* संतोषी माता की उत्पति।
संतोषी माता की उत्पत्ति के बारे में कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। उनमें से एक कथा के अनुसार, संतोषी माता भगवान गणेश की पुत्री हैं।
कथा के अनुसार, एक बार भगवान गणेश की दोनों पत्नियों, रिद्धि और सिद्धि के पुत्र, शुभ और लाभ ने अपनी बहन के बारे में पूछा। उन्होंने भगवान गणेश से कहा कि उन्हें भी एक बहन चाहिए। भगवान गणेश ने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए अपनी शक्तियों से एक ज्योति उत्पन्न की और उसे रिद्धि और सिद्धि की आत्मशक्ति के साथ मिला दिया। इस ज्योति से एक कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम संतोषी रखा गया।
एक अन्य कथा के अनुसार, संतोषी माता देवी दुर्गा का ही एक रूप हैं। उन्हें आनंद और संतुष्टि की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि वे भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उन्हें सुख-समृद्धि प्रदान करती है।
*संतोषी माता की पूजा विधि इस प्रकार है:
व्रत का संकल्प:
* शुक्रवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
* घर के मंदिर में संतोषी माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
* व्रत का संकल्प लें और माता से अपनी मनोकामना कहें।
पूजा सामग्री:
* संतोषी माता की प्रतिमा या चित्र
* जल से भरा कलश
* गुड़ और चना
* लाल वस्त्र या चुनरी
* फूल, फल, धूप, दीप
* कथा की पुस्तक
पूजा विधि:
* माता की प्रतिमा को जल से स्नान कराएं और उन्हें लाल वस्त्र पहनाएं।
* कलश में जल भरकर रखें और उसके ऊपर गुड़ और चने से भरा कटोरा रखें।
* माता को फूल, फल और धूप-दीप अर्पित करें।
* संतोषी माता की कथा पढ़ें या सुनें।
* माता की आरती करें और उन्हें गुड़-चने का भोग लगाएं।
* प्रसाद को परिवार के सदस्यों में बांटें।
व्रत के नियम:
* व्रत के दिन खट्टी चीजें न खाएं और न ही घर में लाएं।
* किसी से भी झूठ न बोलें और न ही किसी का अपमान करें।
* व्रत के दिन केवल एक समय भोजन करें।
* शाम को माता की आरती करें और उन्हें गुड़-चने का भोग लगाएं।
उद्यापन:
* 16 शुक्रवार व्रत करने के बाद उद्यापन करें।
* उद्यापन के दिन 8 कन्याओं को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा दें।
* माता को खीर-पूरी का भोग लगाएं और उसे प्रसाद के रूप में बांटें।
महत्व:
* संतोषी माता की पूजा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
* यह व्रत मनोकामना पूर्ति के लिए भी किया जाता है।
* माता संतोषी की कृपा से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं।
* संतोषी माता व्रत कथा
एक समय की बात है, एक बुढ़िया के सात बेटे थे। उनमें से छह कमाते थे और एक बेरोजगार था। बुढ़िया अपने छह बेटों को प्रेम से खाना खिलाती और सातवें बेटे को बाद में उनकी थाली की बची हुई जूठन खिला दिया करती।
एक दिन, सातवें बेटे की पत्नी ने अपनी सास से कहा, "मां, आप मेरे पति को जूठन क्यों खिलाती हैं?" बुढ़िया ने कहा, "बेटा, वह कुछ काम नहीं करता, इसलिए मैं उसे जूठन खिलाती हूं।"
यह सुनकर सातवें बेटे की पत्नी को बहुत बुरा लगा। उसने अपने पति से कहा, "मुझे यह घर छोड़ देना चाहिए।" उसका पति बोला, "नहीं, तुम यहीं रहो।"
एक दिन, सातवें बेटे की पत्नी मंदिर गई और संतोषी माता से प्रार्थना की, "माता, मेरे पति को काम दो।" संतोषी माता ने उसकी प्रार्थना सुनी और उसके पति को काम मिल गया।
एक दिन, सातवें बेटे की पत्नी ने संतोषी माता का व्रत रखा। उसने सोलह शुक्रवार तक व्रत रखा और संतोषी माता की पूजा की।
एक दिन, संतोषी माता ने उसे सपने में दर्शन दिए और कहा, "बेटी, मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं। तुम जो चाहो मांग सकती हो।" सातवें बेटे की पत्नी ने कहा, "माता, मेरे पति को धन और समृद्धि दो।"
संतोषी माता ने उसकी मनोकामना पूरी की और उसके पति को बहुत धन और समृद्धि मिली।
एक दिन, सातवें बेटे की पत्नी ने संतोषी माता के व्रत का उद्यापन किया। उसने आठ लड़कों को भोजन कराया और उन्हें दक्षिणा दी।
संतोषी माता की कृपा से, सातवें बेटे का परिवार सुख और समृद्धि से रहने लगा।
इस प्रकार, संतोषी माता की कृपा से, सातवें बेटे की पत्नी को सुख और समृद्धि मिली।
नोट*हमने कथा छोटे रूप मै लिखी है जिससे आपको फल मिले और आप याद रख सके ।
पूरी कथा सुनने के लिए आपको ऊपर लिंक दी गई है।
* संतोषी माता आरती ।।
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता।
अपने सेवक जन को, सुख सम्पत्ति दाता॥
सुन्दर चीर सुनहरी माँ धारण कीन्हो।
हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो॥
गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे।
मंद हंसत करुणामयी, त्रिभुवन मन मोहे॥
स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरे प्यारे।
धूप, दीप, मधुमेवा, भोग धरें न्यारे॥
गुड़ अरु चना परम प्रिय, ता में संतोष कियो।
संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो॥
शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही।
भक्त मंडली जुटी, कथा सुनत मोही॥
मंदिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई।
विनय करें हम सेवक, चरनन सिर नाई॥
भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै।
जो मन बसे हमारी, इच्छा फल दीजै॥
दुखी दारिद्री रोगी, संकट मुक्त किए।
बहु धन धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए॥
ध्यान धरो जो मन में, वांछित फल पायो।
पूजा कथा श्रवण कर, घर आनन्द आयो॥
शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदम्बे।
संकट तू ही निवारे, कृपामयी अम्बे॥
संतोषी माँ की आरती, जो कोई जन गावे।
ऋद्धि-सिद्धि सुख सम्पत्ति, जी भर के पावे॥
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता।
अपने सेवक जन को, सुख सम्पत्ति दाता॥
* मेरा अनुभव
मैं भी संतोषी माता का व्रत करता हूं।आज मुझे लगभग एक वर्ष हो गया है। माता के व्रत के प्रभाव से आज मै एक खुशी जीवन की ओर अग्रसर हूं। अब मै पहले से ज्यादा खुश और और आनंदित हुं। जब कोई भी विपत्ति मुझ पर आ जाती है। तो मैं शुक्रवार का इंतजार करता हूं और मुझे शुक्रवार को सारी विपत्ति से निकलने का रास्ता मिल जाता है
Post a Comment (0)