"संतुलित पहचान "
आज के समय में दुनिया का हर इंसान अपनी अपनी पहचान बनाने में लगा हुआ है। कोई पैसे से तो कोई सुंदरता से कुछ लोग दिमाग से कोई अपने विचार और व्यवहार से एक स्वतंत्रत पहचान बनाने में लगा हुआ है। हमें स्वतंत्रत पहचान नहीं वल्कि संतुलित पहचान के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। संतुलित पहचान पहचान बिना चरित्र के नहीं बन सकती चरित्र को आधार बना के जो कुछ भी जीवन मै हासिल है वहीं स्थाई होता है। चरित्र एक आधार है तपस्या है। जैसे अहम का पेट बड़ा होता है उसे रोज कुछ न कुछ चाहिए ।उसी प्रकार चरित्र को रोज संरक्षण चाहिए और यह सब तभी संभव है जब हमारे पास दृढ़संकल्प हो।
आज के दौर मै इंसान बहुत सी समस्याओं से घिरा हुआ है ।इंसान की सबसे बड़ी समस्या असंतुलित विकास और उत्पन्न होने वाले अनेकों रोग। हमारे लिए आज के समय में हंसना बहुत जरूरी है । परेशानियों को देख कर भी हम अगर खुल के हंसेंगे तो हमारी परेशानियों अपने आप ही खत्म सी होते नजर आने लगेगी। आज के आधुनिक युग में इंसान इसे फसा हुआ है कि वो खुद को भूल सा गया है। और आधुनिक युग में इंसान फसता ही जा रहा है इस युग इंसान फसा तो जाता है लेकिन निकलना उसे बहुत मुश्किल हो गया है । उन्नति पाने का मतलब ए नहीं है कि हम खुद को भुला दे और चरित्र को खो दे।
"जो विकास की प्रक्रिया अनुशासन से नहीं बंधती वह विनाश करती है।"
Shivam Soni mathura
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