सावन सोमवार व्रत कथा (कन्याओं एवं महिलाओं हेतु)
1. व्यापारी और संतानहीनता का दुख
प्राचीन समय की बात है। एक नगर में एक बहुत धनी व्यापारी रहा करता था। उसके पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उसे एक बात का दुख था कि उसकी कोई संतान नहीं थी। इसी चिंता में वह और उसकी पत्नी हमेशा दुखी रहते थे। वे दोनों भगवान शिव के परम भक्त थे और संतान प्राप्ति के लिए लगातार पूजा-पाठ और व्रत किया करते थे।
2. शिवजी का वरदान और अल्पायु पुत्र
एक दिन, व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ पूरी श्रद्धा से सावन सोमवार का व्रत रखा। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माता पार्वती के साथ भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। व्यापारी ने नम्रतापूर्वक संतान प्राप्ति का वरदान मांगा। भगवान शिव ने उन्हें तथास्तु कहा और बताया कि उन्हें एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति होगी, लेकिन उसकी आयु केवल सोलह वर्ष होगी। यह सुनकर व्यापारी और उसकी पत्नी को मिला-जुला भाव आया – पुत्र प्राप्ति की खुशी भी थी और अल्पायु की चिंता भी।
3. पुत्र अमर का जन्म और काशी यात्रा
निश्चित समय पर उन्हें एक सुंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पुत्र के जन्म पर नगर में खूब खुशियां मनाई गईं। माता-पिता ने पुत्र का नाम अमर रखा। समय बीतता गया और अमर बड़ा होता गया। जब अमर 16 वर्ष का होने वाला था, तो व्यापारी और उसकी पत्नी ने उसे काशी भेजने का निर्णय लिया। उन्होंने अमर के मामा को उसके साथ भेजा और सख्त हिदायत दी कि वे रास्ते में यज्ञ और दान-पुण्य करते हुए जाएं।
4. राजकुमारी से विवाह और सच्चाई का खुलासा
रास्ते में अमर और उसके मामा एक नगर में रुके जहाँ एक राजा की कन्या का विवाह होने वाला था। लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होना था, वह एक आँख से काना था। यह बात राजा ने छिपा रखी थी। अमर को देखकर राजा ने सोचा कि क्यों न कुछ समय के लिए अमर को राजकुमार बनाकर विवाह करवा दिया जाए। अमर ने राजा की बात मान ली, लेकिन अपनी सच्चाई और राजकुमार की कमी को एक कागज पर लिखकर राजकुमारी की अंगूठी के साथ छोड़ दिया। विवाह के बाद अमर अपने मामा के साथ काशी के लिए निकल पड़ा। जब राजकुमारी ने वह कागज पढ़ा तो उसने उस काने राजकुमार के साथ जाने से इनकार कर दिया।
5. अमर के प्राणों का अंत और शिव-पार्वती का हस्तक्षेप
अमर काशी पहुँच गया और अपने मामा के साथ वहां यज्ञ और पूजा-पाठ करने लगा। 16वें वर्ष के दिन भी अमर ने सावन सोमवार का व्रत रखा। शाम के समय जब वह शिवलिंग पर जल चढ़ा रहा था, तभी उसके प्राण निकल गए। अमर के मामा उसे मृत देखकर विलाप करने लगे। भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर बैठे हुए यह सब देख रहे थे। पार्वती जी ने शिवजी से कहा, "हे प्रभु! आपके भक्त अमर के प्राण निकल गए हैं, कृपया उसे जीवन दान दें।" शिवजी बोले, "मैंने उसकी आयु सोलह वर्ष ही लिखी थी।" लेकिन पार्वती जी ने बहुत आग्रह किया।
6. अमर का पुनर्जीवन और घर वापसी
अंततः, पार्वती जी के कहने पर भगवान शिव ने अमर को पुनर्जीवित कर दिया। अमर जीवित हो उठा और खुशी-खुशी अपने मामा के साथ वापस अपने घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में वे उसी नगर में रुके जहाँ राजकुमारी रहती थी। राजा ने अमर को जीवित देखकर और अपनी पुत्री के साथ उसकी बात जानकर खुशी-खुशी अपनी पुत्री का विवाह अमर से करवा दिया।
7. श्रद्धा का फल और कथा का सार
अमर अपनी पत्नी के साथ वापस घर पहुँचा। जब व्यापारी और उसकी पत्नी ने अपने पुत्र को जीवित और विवाह कर के लौटा देखा, तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। उन्हें विश्वास हो गया कि यह सब भगवान शिव की कृपा से ही हुआ है। उन्होंने जीवन भर सावन सोमवार का व्रत और भगवान शिव की आराधना की। इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि जो भक्त सावन सोमवार का व्रत सच्चे मन और पूरी श्रद्धा से करते हैं, भगवान शिव और माता पार्वती उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं और उनके संकटों को दूर करते हैं।
व्रत विधि और आरती
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा चढ़ाएं।
- "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जप करें।
- कथा सुनें या पढ़ें।
- शिवजी की आरती करें।
- व्रत का पारण करें।
शिवजी की आरती (पूरी)
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा...
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव ओंकारा...
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज ते सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥ ॐ जय शिव ओंकारा...
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ॐ जय शिव ओंकारा...
कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जग पालनकारी॥ ॐ जय शिव ओंकारा...
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्य ये तीनों एका॥ ॐ जय शिव ओंकारा...
त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय शिव ओंकारा...
विशेष ध्यान दें:
कथा सुनते समय मोबाइल साइलेंट रखें, मन शांत रखें और पूरी श्रद्धा से व्रत का पालन करें। सावन में सोमवार व्रत विशेष फलदायी माना गया है, विशेषकर विवाह योग्य कन्याओं हेतु।
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