प्रेमानंद जी बनाम अनुरुद्धाचार्य जी विवाद: एक संत-मर्यादा की कसौटी
"जा की रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तैसी" – तुलसीदास जी की ये अमर पंक्ति आज के इस संत विवाद को समझने में सबसे सटीक बैठती है। एक ओर हैं स्वामी प्रेमानंद जी महाराज, जिनका ध्यान भक्ति, ब्रह्मचर्य और रामकथा पर केंद्रित रहा है। वहीं दूसरी ओर हैं अनुरुद्धाचार्य जी महाराज, जो अपने अलग भाषाशैली और युवा अंदाज़ के लिए प्रसिद्ध हैं।
🔴 विवाद की जड़ क्या है?
विवाद की शुरुआत प्रेमानंद जी के एक बयान से मानी जा रही है जिसमें उन्होंने कहा:
"कथा के मंच से महिलाओं को गलत ढंग से संबोधित करना और 'गोरी' या अन्य आकर्षण शब्दों का उपयोग करना, संत की मर्यादा के विपरीत है।"इसके बाद सोशल मीडिया पर यह बयान वायरल हो गया।
[Jagran News Source]
🟡 अनुरुद्धाचार्य जी का क्या पक्ष है?
अनुरुद्धाचार्य जी का कहना है कि:
"हम युवाओं को ध्यान में रखते हुए थोड़ा नया प्रयोग करते हैं, जिससे वे धर्म से जुड़ें। हमारा उद्देश्य गलत नहीं होता।"उनके भक्तों ने इसे पुरानी पीढ़ी बनाम नई शैली का विवाद बताया।
🔍 लॉजिक: क्या है सही और क्या है सीमाएं?
- कथा एक सार्वजनिक मंच है, जहां संत की हर बात समाज पर असर डालती है।
- यदि भाषा लुभावन या विवादास्पद हो, तो युवाओं का ध्यान भटक सकता है।
- लेकिन यदि बहुत रूखा प्रवचन हो, तो नई पीढ़ी जुड़ नहीं पाएगी।
🧠 मनोवैज्ञानिक पहलू:
आज के युवा ज्यादा विजुअल, इमोशनल और रिलेटेबल भाषा से जुड़ते हैं। यही कारण है कि अनुरुद्धाचार्य जी के प्रवचन तेजी से वायरल होते हैं। लेकिन जहां "गोरी" या अन्य भावनात्मक शब्द महिलाओं को निशाना बनाएँ, वहां संवेदनशीलता जरूरी है।
🔗 प्रमुख न्यूज़ और सोशल मीडिया सोर्स:
🗣️ जनता की राय:
कई लोग मानते हैं कि प्रेमानंद जी की संत-मर्यादा की चेतावनी जायज़ है। वहीं एक वर्ग का मानना है कि अनुरुद्धाचार्य जी समाज से जुड़ाव बना रहे हैं, तो थोड़ा नवाचार ज़रूरी है।
काने से काना कहो तो कानों जाए रूठ – मतलब जब सीधी बात भी लोग गलत ले लें, तब विवेक ज़रूरी है।
इस वीडियो में Zee News ने हालिया बयानबाज़ी को कवर करते हुए बताया कि प्रेमानंद महाराज के विवादित बयान पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जबरदस्त पलटवार किया। योगी ने स्पष्ट कहा कि ऐसे लोगों को उत्तर प्रदेश की शांति भंग करने की इजाजत नहीं दी जाएगी। यह प्रतिक्रिया ना सिर्फ़ राजनीतिक माहौल को गर्म करती है, बल्कि ये भी दर्शाती है कि राज्य सरकार जन-भावनाओं के विरुद्ध किसी भी टिप्पणी को बर्दाश्त नहीं करेगी।
📜 निष्कर्ष:
संत मर्यादा की रक्षा जरूरी है, लेकिन नये प्रयोग भी ज़रूरी हैं। विवाद की बजाय संवाद समय की मांग है।
#Shivam90 Exclusive | Source Verified | Updated: August 2025
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