"अनुभवों ने संबंधों को दी बेहतरीन अभिव्यक्ति "
स्त्री-पुरुष के संबंधों को लेकर विभिन्न लेखकों, कवियों, बुद्धिजीवियों ने बहुत कुछ कहा है और इनमें से ज्यादातर के विचार उनके अपने अनुभवों और अपनी ज़िन्दगी की मथनी में मथकर बाहर आए हैं। इनमें से कवियों को तो उनके संबंधों ने ही कवि और लेखक बनाया है। अब चाहे वह भारत के मोहन राकेश हों या तुर्की के हिकमत। मोहन राकेश अपने जीवन में स्त्रियों के साथ अपने संबंधों के दरिया में डूबते-तैरते रहे। उनकी यही छटपटाहट, यही कोशिश उनकी लेखनी में भी साफ नजर आती है। ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘आधे-अधूरे’, ‘लहरों के राजहंस’ जैसे नाटकों और उनकी लिखी सैकड़ों उम्दा कहानियों में स्त्री-पुरुष के संबंधों का एक अनूठा जाल बुना गया है। ‘आषाढ़ का एक दिन’ में नायिका मल्लिका, नायक कालिदास से कहती है कि ‘मेरी आंखें इसलिए गीली हैं कि तुम मेरी बात नहीं समझ रहे। तुम यहां से जाकर भी मुझसे दूर हो सकते हो..? यहां ग्राम प्रांतर में रहकर तुम्हारी प्रतिभा को विकसित होने का अवसर कहां मिलेगा? यहां लोग तुम्हें समझ नहीं पाते। वे सामान्य की कसौटी पर तुम्हारी परीक्षा करना चाहते हैं। विश्वास करते हो न कि मैं तुम्हें जानती हूं? जानती हूं कि कोई भी रेखा तुम्हें घेर ले तो तुम घिर जाओगे। मैं तुम्हें घेरना नहीं चाहती, इसलिए कहती हूं, जाओ।’ जहां एक ओर मोहन राकेश अपने संबंधों को मूर्त-रूप में मौजूद होकर जीते रहे, वहीं हिकमत ने अपनी ज़िन्दगी का ज्यादातर हिस्सा जेल में बिताया। जेल में रहकर वे अपने जीवन में घटित स्थितियों, घटनाओं और संबंधों पर कविताएं रचते रहे। हिकमत की मनोदशा के एक पहलू की झलक तब मिलती है, जब वे कैदखाने से अपनी पत्नी को लिखते हैं — सबसे खूबसूरत महासागर वह है जिसे हम अब तक देख पाए नहीं सबसे खूबसूरत बच्चा वह है जो अब तक बड़ा हुआ नहीं सबसे खूबसूरत दिन हमारे वो हैं जो अब तक मयस्सर हमें हुए नहीं और जो सबसे खूबसूरत बातें मुझे तुमसे करनी हैं अब तक मेरे होंठों पर आ पाई नहीं। इन पंक्तियों को पढ़कर ही भीतर उस सजायाता कैदी का दर्द सामने आता है, जिसका कसूर सिर्फ इतना था कि वह कविताएं लिखता था। ऐसी कविताएं, जो व्यवस्था और सरकार को पसंद नहीं आती थीं, लेकिन को जेल की उस अंधेरी, सीलन भरी ठंडी कोठरी में उनके संबंधों की गर्मी ने ताकत दी। उनके भीतर ऊर्जा और एहसासों का लावा बहाए रखा, जो उन्हें अपनी सदी का महान कवि और एक महत्वपूर्ण शासनकर्ता बना गया।
प्रेम में विवाह और विवाह में प्रेम मुक्त प्रेम, विवाह की कार्बन कॉपी है। अंतर यही है कि इसमें निभ न पाने की स्थिति में तलाक की आवश्यकता नहीं है। फ्रेंच लेखिका सिमोन और बीसवीं सदी के महान विचारक व लेखक ज्यां पाल सात्र्र का रिश्ता पूरी तरह से कुछ अलग तरह का था। वे कभी साथ नहीं रहे। पचास वर्षो तक उनका अटूट संबंध उनके लिए बहुधा सामान्य घरेलू जीवन जैसा ही था। वे लंबे समय तक होटलों में रहे, जहां उनके कमरे अलग अलग थे। कभीकभी तो वे अलग मंजिलों पर भी रहे। बाद में सिमोन अपने स्टूडियो में रहीं और सात्र्र अपना मकान खरीदने से पहले अपनी मां के साथ रहे। किसी स्त्रीपुरुष के बीच यह एक ऐसा संबंध था, जिसकी पारस्परिक समझ केवल मृत्यु के द्वारा ही टूटी। इन दोनों का प्रेम मुक्त ही नहीं था, बल्कि आनंदहीन, नीरस चीजों से उन्हें असंबद्ध और मुक्त रखता था। यही वजह है कि पाल के साथ अपने संबंध को सिमोन ज़िन्दगी का सबसे बड़ा हासिल मानती थीं। ‘एक सफल विवाह से प्यारा दोस्ताना और अच्छा रिश्ता और कोई नहीं हो सकता..’ मार्टिन लूथर की यह बात सोलह आने सही है। किंतु आधुनिक जीवन में सफल विवाह के कुछ सबसे बड़े शत्रु उभरकर सामने आए हैं और उनमें से प्रमुख है — ईगो, दंभ और घमंड। इन तीनों शदों के अर्थो में कुछ भेद जरूर है, पर इनकी आत्मा एक है। इनका वार एक सा है, प्रहार एक सा है और इनका असर भी एक सा है। जब तक ये तीनों ज़िन्दगी हैं, सफल विवाह दम तोड़ता नजर आता है। हम अपनी ईगो के चलते विवाह जैसे खूबसूरत रिश्ते की बलि चढ़ाने में भी नहीं हिचकिचाते।
इसके विपरीत अगर ईगो को ही बलि की वेदी पर चढ़ा दिया जाए तो विवाह जैसा संबंध हमारे जीवन में नई रोशनी भर सकता है। ईगो को टक्कर देने के लिए हमारे पास कुछ हथियार हैं और वे हथियार हैं, प्यार और त्याग.. क्योंकि अगर प्यार है तो त्याग है, और त्याग है तो रिश्ता टूट ही नहीं सकता। बल्कि वह अच्छे से फले फूलेगा और मिठासभरा होगा। जहां दंभ है, वहां प्यार नहीं रह सकता, वहां हम एकदूसरे के साथ नहीं, एक दूसरे से मिलकर नहीं, बल्कि एक दूसरे से अलग होकर जी रहे होते
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