ऑपरेशन लंगड़ा: एनकाउंटर से इंसाफ या डर की राजनीति?
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अपराधियों के खिलाफ ‘ऑपरेशन लंगड़ा’ नाम से एक विशेष अभियान शुरू किया है। इस ऑपरेशन का मुख्य उद्देश्य है – अपराधियों को गोली या जेल का विकल्प देना। लेकिन क्या यह तरीका सही है? क्या इस अभियान ने अपराध को रोका या यह सिर्फ भय पैदा करने वाला मॉडल बन गया है?
📌 क्या है ऑपरेशन लंगड़ा?
यह अभियान उन अपराधियों के लिए शुरू किया गया है जो फरार हैं, वांछित हैं या फिर जमानत पर छूटने के बाद फिर से अपराध में लिप्त हैं। पुलिस इन अपराधियों को पकड़ने के लिए एनकाउंटर की नीति को प्राथमिकता दे रही है।
“गुंडे या तो जेल में होंगे या प्रदेश छोड़ देंगे” — योगी आदित्यनाथ
🔥 24 घंटे में 10 मुठभेड़: आंकड़े डराते हैं
- 24 घंटे में 10 मुठभेड़
- 7 से अधिक घायल अपराधी
- 1 पुलिस कर्मी भी घायल
- गाजियाबाद, झांसी, आगरा, शामली, बलिया, उन्नाव, लखनऊ जैसे ज़िलों में कार्रवाइयाँ
🧠 ऑपरेशन का मनोवैज्ञानिक प्रभाव
इस अभियान ने अपराधियों में भय का माहौल बना दिया है। लेकिन इसके साथ ही समाज में ‘न्याय प्रक्रिया’ पर सवाल उठने लगे हैं। क्या हर संदिग्ध को गोली मारी जानी चाहिए? क्या यह संविधान के अनुरूप है?
⚖️ मानवाधिकार संगठनों की आपत्ति
AIHRC, PUCL और Amnesty International जैसी संस्थाओं ने इन एनकाउंटर को फर्जी करार देने की मांग की है। वे कहती हैं कि कुछ मामलों में अपराधी आत्मसमर्पण करना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने गोली मारी।
🎯 क्या यह मॉडल स्थायी समाधान है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि अपराध नियंत्रण के लिए पुलिसिंग का यह मॉडल अस्थायी डर
📰 मीडिया और राजनीति की भूमिका
कुछ चैनल्स इसे “यूपी मॉडल” कहकर प्रचारित कर रहे हैं। वहीं विपक्षी पार्टियां इसे राजनीतिक स्टंट
“पुलिस सुधार के बिना कोई भी अभियान सिर्फ शो है।” — रिटायर्ड DGP प्रकाश सिंह
🔚 निष्कर्ष: डर से नहीं, सुधार से बदलाव होगा
ऑपरेशन लंगड़ा पुलिस की सख्ती का प्रतीक है, लेकिन अगर इस पर पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं रखी गई, तो यह जनता का विश्वास खो सकता है। बेहतर होगा कि इसे न्यायिक निगरानी में रखा जाए और हर मुठभेड़ की जांच हो।
📝 स्रोत: प्रभासाक्षी | रिपोर्ट: Shivam90.in
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