
अमित शाह का बड़ा ऐलान: 30 दिन जेल तो कुर्सी ख़ाली
रिपोर्ट: News Shivam90.in डेस्क | लोकेशन: मथुरा उत्तर प्रदेश | #Shivam90
नई दिल्ली, 22 अगस्त 2025: आज संसद के मानसून सत्र में इतिहास रचने वाली बहस देखने को मिली। हमारे देश के गृह मंत्री अमित शाह ने ऐसा प्रावधान सामने रख दिया कि लोग तिलमिला गए , और भाई जिसने सत्ता, नैतिकता और लोकतंत्र पर गहरी चर्चा छेड़ दी। भाई अमित शाह ने ऐलान किया कि अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी गंभीर आपराधिक मामले में लगातार 30 दिन जेल में रहता है, तो 31वें दिन उसकी कुर्सी अपने आप खाली मानी जाएगी।
क्या है नया प्रस्ताव?
अब तक स्थिति यह थी कि किसी मंत्री या मुख्यमंत्री को जेल जाने के बाद भी, जब तक अदालत द्वारा दोषी सिद्ध न किया जाए, तब तक वह पद पर बने रह सकते थे। लेकिन इस नए प्रावधान के तहत:
- अगर कोई चुना हुआ जनप्रतिनिधि मंत्री पद पर रहते हुए 30 दिन से ज़्यादा जेल में है, तो उसे स्वतः पद छोड़ना पड़ेगा।
- यह नियम प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों सभी पर समान रूप से लागू होगा।
- अगर वे अदालत से निर्दोष साबित हो जाते हैं, तो उन्हें पुनः पद पर लौटने का अवसर मिलेगा।
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सरकार का तर्क: भरोसा सबसे ऊपर
अमित शाह ने संसद में कहा—“लोकतंत्र की जड़ जनता के भरोसे से सींची जाती है। सरकार जेल की सलाखों से नहीं चल सकती। हमें नैतिक राजनीति को वापस लाना होगा।”
सरकार का मानना है कि इस कदम से:
- भ्रष्टाचार और अपराध पर नकेल कसेगी।
- सत्ता की छवि और विश्वसनीयता मज़बूत होगी।
- जनता का विश्वास लोकतंत्र और संविधान पर और गहरा होगा।
विपक्ष की आपत्ति: दुरुपयोग का डर
विपक्षी दलों ने इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया। उनका कहना है कि:
- सिर्फ आरोप और जेल भेजने से ही पद छिन जाना लोकतांत्रिक अधिकारों के खिलाफ है।
- इसका राजनीतिक दुरुपयोग हो सकता है—जैसे विरोधियों को फंसाकर सत्ता से हटाना।
- जब तक अदालत सज़ा न दे, तब तक किसी को दोषी मानना उचित नहीं है।
जनता की प्रतिक्रिया
देशभर में इस प्रस्ताव पर मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली।
- समर्थन: “अब नेताओं को जेल की बजाए जनता की सेवा करनी होगी। राजनीति में स्वच्छता आएगी।”
- विरोध: “यह क़दम कहीं निर्दोष लोगों को फंसाने का हथियार न बन जाए।”
देशी अंदाज़ में: ये प्रस्ताव खेत का पहरेदार है—कौवे भी भागेंगे, पर ध्यान रहे कि अच्छे परिंदे डर कर उड़ न जाएँ।
आगे की राह
फिलहाल यह प्रस्तावित प्रावधान है। इसे लागू करने के लिए संसद के दोनों सदनों से मंज़ूरी लेनी होगी। अगर राज्यों से जुड़ा कोई हिस्सा है तो आधे राज्यों की सहमति भी ज़रूरी होगी।
कानून विशेषज्ञों का मानना है कि इस पर संवैधानिक बहस भी होगी, क्योंकि यह सीधे-सीधे जनप्रतिनिधियों के अधिकार और जनता के भरोसे, दोनों से जुड़ा है।
संपादक: News Shivam90.in | संपर्क: news@shivam90.in
राय: सत्ता का ताज जनता की उँगली पर टिकता है—भरोसा टूटा तो ताज भारी हो जाता है। अमित शाह का यह प्रस्ताव भरोसा जोड़ेगा या डर बढ़ाएगा, यही लोकतंत्र की अगली बड़ी परीक्षा होगी।
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