फर्जी मुकदमा दर्ज कराने वालों पर बड़ी कार्रवाई – अब होगी जेल और जुर्माना
नई दिल्ली: अक्सर देखा जाता है कि घरेलू हिंसा (Domestic Violence), गुज़ारा भत्ता (Maintenance), दहेज प्रताड़ना (Dowry Harassment) जैसे मामलों में कई बार झूठे केस दर्ज करा दिए जाते हैं। ऐसे मुकदमों का असली मकसद सामने वाले को मानसिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से परेशान करना होता है। लेकिन अब अदालतें सख्ती से ऐसे मामलों पर कार्रवाई कर रही हैं और फर्जी मुकदमा दर्ज कराने वालों पर कड़ी सजा का प्रावधान है।
क्या है फर्जी मुकदमा?
जब कोई व्यक्ति बिना ठोस सबूत और बिना किसी वास्तविक घटना के, केवल बदनाम करने, प्रताड़ित करने या फायदे के लिए गलत जानकारी देकर केस दर्ज कराता है, तो उसे फर्जी मुकदमा कहा जाता है। ऐसे मामलों में अदालत मानती है कि यह न्याय प्रणाली के दुरुपयोग (Abuse of Process of Law) के अंतर्गत आता है।
फर्जी मुकदमे के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराएं
- धारा 182 IPC: किसी लोक सेवक (Police, Judge आदि) को गलत जानकारी देना, ताकि वह किसी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करे। सजा – 6 महीने से 2 साल तक की जेल और जुर्माना।
- धारा 191 और 193 IPC: झूठी गवाही देना और झूठे सबूत पेश करना। सजा – 7 साल तक की जेल और जुर्माना।
- धारा 211 IPC: किसी पर झूठा आपराधिक आरोप लगाना। सजा – अगर मामूली अपराध है तो 2 साल तक, और अगर गंभीर अपराध (जैसे हत्या का आरोप) है तो 10 साल तक की सजा।
- धारा 499 और 500 IPC: झूठा केस लगाकर किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाना। यह मानहानि (Defamation) के अंतर्गत आता है। सजा – 2 साल की जेल और जुर्माना।
अदालतों की सख्ती
हाल ही में कई मामलों में अदालतों ने यह साफ कर दिया है कि झूठे मुकदमे दर्ज करने वाले चाहे पक्षकार हों या उनके वकील, दोनों को कठोर सजा दी जाएगी। लखनऊ की एक अदालत ने फर्जी SC-ST एक्ट केस डालने वाले वकील को 10 साल कैद और ₹2.51 लाख जुर्माना की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि न्यायपालिका का समय और संसाधन झूठे मुकदमों में बर्बाद करना गंभीर अपराध है।
फर्जी केस डालने के पीछे कारण
- पति-पत्नी के विवादों में बदला लेने की भावना।
- पैसों की उगाही और ब्लैकमेल।
- जायदाद और पारिवारिक झगड़े।
- राजनीतिक या व्यक्तिगत रंजिश।
असर और नुकसान
फर्जी मुकदमों का सबसे बड़ा असर निर्दोष लोगों की जिंदगी पर पड़ता है। उन्हें न केवल कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने पड़ते हैं, बल्कि समाज में बदनामी भी होती है। कई बार नौकरी और करियर भी बर्बाद हो जाते हैं। साथ ही असली पीड़ितों के केस कमजोर पड़ जाते हैं, क्योंकि झूठे मामलों की वजह से असली घटनाओं पर शक होने लगता है।
कानूनी रास्ते
अगर आपके ऊपर कोई फर्जी केस दर्ज हुआ है, तो आप इन उपायों का सहारा ले सकते हैं –
- धारा 340 CrPC – अदालत से अनुरोध कर सकते हैं कि झूठा केस डालने वाले के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
- मानहानि का दावा (धारा 500 IPC) – झूठा आरोप लगाने वाले से हर्जाना वसूल सकते हैं।
- काउंटर FIR – झूठा केस करने वाले के खिलाफ धारा 182 और 211 के तहत FIR दर्ज करा सकते हैं।
- जमानत और अग्रिम जमानत – ताकि बेवजह जेल न जाना पड़े।
न्यायपालिका का संदेश
अदालतों ने साफ कहा है कि अब झूठे मुकदमों को हल्के में नहीं लिया जाएगा। ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई करके ही न्याय प्रणाली पर लोगों का विश्वास बना रहेगा। “न्याय का दुरुपयोग करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।”
फर्जी केस दर्ज कराने या झूठा आरोप लगाने वालों को 5-10 साल तक की जेल और लाखों रुपये का जुर्माना हो सकता है। नए कानून (BNS धारा 217 व 248) के तहत झूठा केस दर्ज करने पर सजा और जुर्माना दोनों का प्रावधान है। कुछ मामलों में कोर्ट सीधे-सीधे 10 साल या उससे अधिक की कैद और 2-5 लाख रुपये तक का जुर्माना दे रही है। केस की गंभीरता के लिहाज से सजा और जुर्माने की रकम बढ़ सकती है।निष्कर्ष
फर्जी मुकदमे डालना केवल एक व्यक्ति को नहीं बल्कि पूरे समाज और न्यायिक प्रणाली को नुकसान पहुँचाता है। इसलिए जरूरी है कि लोग समझदारी से असली मामलों में ही कानून का सहारा लें। अगर कोई जानबूझकर झूठा केस करता है तो उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
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