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"हाईकोर्ट का प्रोसेस: पर्ची, फोटो और वकील फीस का पूरा सिस्टम"

हाईकोर्ट का पूरा प्रोसेस: जानिए कैसे चलता है मुकदमे का सफर

"हाइकोर्ट"

हाईकोर्ट (High Court) को न्यायपालिका का सबसे अहम हिस्सा माना जाता है। यहां छोटे-मोटे केस नहीं बल्कि बड़े और जटिल मामलों की सुनवाई होती है। कई बार लोग हाईकोर्ट जाते हैं लेकिन उन्हें यह समझ नहीं आता कि वहां का प्रोसेस कैसा होता है, क्या-क्या करना पड़ता है और किन-किन औपचारिकताओं से गुजरना होता है। इस आर्टिकल में हम आपको बिल्कुल आसान भाषा और देशी अंदाज में समझाएंगे कि हाईकोर्ट का प्रोसेस क्या है, बिना वकील की फीस और अंदर-बाहर होने वाले झंझट के बारे में भी बताएंगे।

1. हाईकोर्ट क्यों जाना पड़ता है?

हाईकोर्ट जाने के कई कारण हो सकते हैं – जैसे कि निचली अदालत से संतोषजनक न्याय न मिलना, कोई बड़ी संवैधानिक बात होना, स्टे ऑर्डर लेना, या किसी केस को जल्द निपटाने की मांग करना। जब किसी को लगता है कि जिला अदालत से न्याय नहीं मिला, तो वह हाईकोर्ट में अपील कर सकता है।

2. पर्ची और दाखिल करने की प्रक्रिया

जब आप हाईकोर्ट में केस लेकर जाते हैं तो सबसे पहले पर्ची कटवानी होती है। यह पर्ची दरअसल एक फाइलिंग नंबर की तरह काम करती है। इसके बिना केस आगे नहीं बढ़ेगा। पर्ची बनवाने के लिए वहां पर टाइपिस्ट और एजेंट बैठे रहते हैं जिसमें आपके वकील की एक यूनिक 🆔 का इस्तेमाल करके पर्ची बनाई जाती है उसमें 150 रुपए फोटो चार्ज और 450 रुपए कोर्ट फीस जाती है। भाई जो 450 रुपए कोर्ट फीस जाती है उसमें वकील और कोर्ट दोनों की साझा होती है ।  हमे कुल 600 रुपए खर्च करने होते है। सबसे जरूरी बात पर्ची बनवाते समय याद रखना जरूरी है पहला वकील की यूनिक 🆔 और अपना आधार कार्ड साथ मै रखे ओरिजनल वहां पर फोटो कॉपी काम नहीं आती पर्ची नहीं बनाते ।

जब पर्ची तैयार हो जाती है फिर फोटो खींचने का प्रोसेस चालू होता है वहां आपका फोटो खींचने के बाद आपको 3 कार्ड मिलेगे जो आपको अपने वकील को देने होते है। 

कार्ड की मे लिखी जानकारी को पहले अच्छे से देख ले कोई गलती तो नहीं अगर है तो उसे तुरंत सही करवाए बरना अन्दर केस की पिटिशन के टाइम गलत जानकारी देने की स्थिति बन सकती है ।

3. फोटो और पहचान पत्र

हाईकोर्ट में केस दाखिल करने या पैरवी करने के लिए 2 फोटो और पहचान पत्र जरूरी है।

अपने माता पिता के आधार बगैर फोटो साथ मै रखना बहुत जरूरी है।

4. वकील की फीस का हिसाब

अब बात आती है वकील की फीसलीगल एड

के तहत मुफ्त वकील भी पा सकते हैं।
अगर आप चाहे तो अच्छे वकील से मिलके भी अपना काम करवा सकते है लेकिन थोड़ा खर्चा करना पड़ सकता है वहां एक माध्यम वकील की फीश लगभग 25 से 35 हजार रुपए चुकानी पड़ती है लेकिन हाइकोर्ट मै ए फीस 1 टाइम होती है इसके बाद फ़ीस नहीं देनी पड़ती।
इस लिए जब आप को अपना अच्छा वकील मिल जाए तो पहले तय कर लेना बेहतर होता है।

5. केस की सुनवाई का तरीका

पर्ची और दाखिले के बाद केस कोर्ट नंबरजज सारा माहौल।।

1. केस की शुरुआत – FIR या शिकायत

केस सबसे पहले FIR दर्ज होने या सीधे कोर्ट में शिकायत देने से शुरू होता है।

2. चार्जशीट और दस्तावेज़

पुलिस जांच करके चार्जशीट तैयार करती है और कोर्ट में पेश करती है।

3. पहली सुनवाई (First Hearing)

इस दिन आरोपी पेश होता है, जमानत पर चर्चा होती है और केस की कॉपी दी जाती है।

4. आरोप तय होना (Framing of Charges)

जज यह तय करता है कि आरोपी पर कौन-कौन से आरोप लगाए जाएं।

5. गवाहों की गवाही

पहले प्रॉसिक्यूशन (सरकारी पक्ष) गवाह पेश करता है, फिर डिफेंस (बचाव पक्ष) के गवाह आते हैं।

6. बहस (Arguments)

दोनों तरफ के वकील कानून और सबूतों के आधार पर बहस करते हैं।

7. फैसला (Judgment)

जज सबूत और दलीलों को देखकर अंतिम फैसला सुनाता है।

8. अपील का अधिकार

अगर किसी को फैसला सही नहीं लगता तो वह ऊपरी अदालत (सेशन, सुप्रीम कोर्ट) में अपील कर सकता है।

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Shivam Soni
Shivam Soni
Founder, Shivam90.in | Desi Digital Journalist

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